पूर्व ऐतिहासिक मनुष्य (Pre-historic man) अच्छी और बुरी आत्माओं को कई समझ में न आने वाली घटनाओं का कारण मानता था, जैसे तूफान, भूकम्प, अग्निकांड, बाढ़, बीमारी (सोरायसिस), महामारी, आकाश में चमकती बिजली आदि मानसिक विकारों (Mental Disorders) के लिये भी वैसे ही तर्क दिये जाते थे। मानसिक रोगी भी बुरी आत्माओं के शिकार समझे जाते थे। इसका उपचार झाड़-फूंक (Exorcism) द्वारा किया जाता था झाड़-फूंक करने वाले को विशेष ओझा (Shaman) कहा जाता था। झाड़-फूंक की प्रथाएँ भारत वर्ष में अब भी मिलती हैं। इन प्रयाओं का प्रचलन उन क्षेत्रों में या उन संस्कृतियों में अधिक है जहां शिक्षा का अभाव है।
मानसिक रोगियों या मानसिक विकारों का उल्लेख अथर्ववेद में भी मिलता है, जो ईसा पूर्व 2000 वर्ष (2000 B.C.) की कृति है। अथर्ववेद में उन्माद, ग्रही, अपस्मार, भय, मनसंताप आदि का उल्लेख इनके लक्षणों तथा इनकी उपचार विधियों के साथ मिलता है। प्राचीन ग्रीस (800 B.C.) में असामान्य व्यवहार की व्याख्या ईश्वर के प्रति किये गये अपराध के लिये दंड के रूप में की जाती । लेकिन धीरे-धीरे यह धारणा कमजोर होती चली गई थी।
ग्रीक चिकित्सक हिप्पोक्रेटस (Hippocrates, 460-377 B.C.) ने देवों और दानवों (Deities & Demons) की मानसिक विकारों के विकास में कोई भूमिका स्वीकार नहीं की। उसके अनुसार मानसिक विकार मस्तिष्क की विकृतियों का परिणाम होते हैं।
उसने मानसिक विकारों के तीन वर्ग बताए हैं-
(i) अति उत्तेजना (Mania),
(i) अवसाद (Melancholia ie. Depression),
(ii) मस्तिष्क ज्वर (Phrenitis ie. Brain Fever)।
सत्रहवीं और अट्ठारहवीं शताब्दियों में अन्धविश्वासों का स्थान वैज्ञानिक विधि ने ले लिया। जर्मन चिकित्सक जोहन वेयर (Johan Weyer) ने मानसिक विकारों के लिये मनोवैज्ञानिक द्वंद्रों तथा खराब अन्तः वैयक्तिक संबंधों को उत्तरदायी माना। धीरे-धीरे मानसिक अस्पताल भी स्थापित किये जाने लगे। अट्ठारहवीं सदी के अंत तक लगभग 32 मानसिक चिकित्सालयों की स्थापना हुई। भारत में 1920 में पश्चिम बंगाल में ‘लुंबिनी पार्क अस्पताल’ की स्थापना हुई।
क्रेमलिन (1856-1926) का विश्वास था कि असामान्य व्यवहार आगिक गड़बड़ियों (Organic Disturbances) के परिणामस्वरूप होता है। फ्रायड (1856-1939) के अनुसार अचेतन मन मनोरोगों की उत्पत्ति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। वाटसन (1878-1958), स्किनर (1904-1994) तथा अन्य कई विद्वान मानने लगे कि कुसमायोजित व्यवहार दोषपूर्ण सीखने के लिये उत्तरदायी होता है।
असामान्य व्यवस्था है? (What is ‘Abnormal Behaviour?)
असामान्यता के सम्प्रतय्य की व्याख्या करें। (Explain the concept of Abnormality)
(a) पड़ता उपागम
पहता उपागम अपसामान्य व्यवहार को सामाजिक मानकों से विचलित (Deviated from social norms) व्यवहार मानता है अर्थात् वह व्यवहार जो सामाजिक प्रत्याशाओं (Social Expectations) से हटकर हो। हर समाज के कुछ मानक (Norms) होते हैं जो समाज में उचित ‘नियमों (कथित या अकथित) की भूमिका निभाते हैं। इन सामाजिक मानकों को तोड़ने वाले व्यवहार अपसामान्य व्यवहार कहलाते हैं। सामाजिक मानकों का विकास संस्कृति, इतिहास, मूल्यों, आदतों, कौशलों, कला आदि से होता है।
(b) दूसरा उपागम
दूसरा उपागम अपसामान्य व्यवहार के दुरनुकूलक (Maladaptive) व्यवहार के रूप में समझाता है। कुछ लोग मानते हैं कि व्यवहार को सामान्यता को समझाने का सबसे उपयुक्त मापदंड सामाजिक स्वीकृति नहीं, बल्कि यह है कि यह व्यक्ति के कल्याण और संबंधित समूह के कल्याण (Well Being) को पोषित करता है। कल्याण (Welf Being) में अपनी क्षमताओं का पूर्ण विकास एवं उपयोग शामिल है।
अपसामान्य व्यवहार के लिये उत्तरदायी कारक (Factors Underlying Abnormal Behaviour)
- जैविक कारक (Biological Factors)
- आनुवंशिक कारक (Genetic Factors)
- मनोवैज्ञानिक मॉडल (Psychological Models)
- संज्ञानात्मक मॉडल (Cognitive Models)
- मानवतावादी आस्तित्वपरक मॉडल (Humanistic Existential Model)
- सामाजिक सांस्कृतिक मॉडल (Socio- Cultural Model)
- रोगोन्मुखता भांडत (Diathesis-stress Model)
1. जैविक फारक (Biological Factors) से कारक व्यवहार के सभी पक्षों को प्रभावित करते हैं। उदाहरण-दोषपूर्ण जीन, इन्डोक्राइन स्क्शिन (Endocrine Dysfunction), मस्तिष्क डिस्फेक्शन (Brain Disfunction)।
2. आनुवंशिक कारक (Genetic Factors) इन कारकों का संबंध मनोविदलता (Schizophrenia), मानसिक मंदन (Mental Retardation) तथा अन्य मनोवैज्ञानिक विकारों (Disorders) से पाया जाता है।
3. मनोवैज्ञानिक मॉडल (Psychological Model) यह मॉडल मानसिक विकारों के मनोवैज्ञानिक कारणों को बताते हैं। इनमें शामिल हैं-मनोगत्यात्मक मॉडल (Psychodynamic Model), व्यवहारात्मक मॉडल (Behavioural Model) ।
4. संज्ञानात्मक मौत (Cognitive Model) इस मॉडल ने भी मनोवैज्ञानिक कारणों पर जोर दिया है। इस मॉडल के अनुसार अपसामान्य व्यवहार संज्ञानात्मक समस्याओं के कारण घटित हो सकते हैं। जैसे-अतार्किक तरह से सोचकर नकारात्मक निष्कर्ष निकालना।
5. मानवतावादी अस्तित्वपरक मॉडल (Humanistic-existential Model) : यह मनुष्य के अस्तित्व के व्यापक पहलुओं पर जोर देता है, जैसे-मनुष्य में जन्म से ही सहयोगी और रचनात्मक होने की स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है।
6. सामाजिक-सांस्कृतिक मॉडल (Socio- Cultural Model) इस मॉडल के अनुसार सामाजिक और सांस्कृतिक शक्तियां जो व्यक्तियों को प्रभावित करती हैं, इनके संदर्भ में अपसामान्य व्यवहार को ज्यादा अच्छे ढंग से समझा जा सकता है।
उदाहरणार्थ- परिवार संरचना सम्प्रेषण, सामाजिक तंत्र सामाजिक दशाएं तथा सामाजिक भूमिकाएं आदि ।
7. रोगोन्मुखता दबाव मॉडल (Diathesis Stress Model) : इस मॉडल के अनुसार जब किसी विकार के लिये जैविक पूर्ववृत्ति किसी दबावपूर्ण स्थिति के कारण सामने आ जाती है तब मनोवैज्ञानिक विकार उत्पन्न होते हैं। जेम्स ड्रीवर (James Drever 1968) के अनुसार असामान्य से सामान्य से काम या अधिक विषमता है।
(Abnormal : Diverging more or less widely from the normal.) “असामान्य‘ शब्द अंग्रेजी शब्द ‘एबनार्मल’ (Abnormal) का हिंदी रूपान्तर है। ‘Abnormal’ शब्द की उत्पत्ति ‘एनामीलोस” (Anomelos) से हुई है, जिससे अभिप्राय है ‘जो नियमित न हो’ (Not Normal) । इस प्रकार ‘Abnormal’ शब्द का शाब्दिक अर्थ है-‘सामान्य से दूर हटा हुआ’ (Away from normal)। किस्कर (Kisker 1949) के अनुसार, “वे मानव व्यवहार और अनुभूतियां जो साधारणतः जनोखी, असाधारण या पृथक् हैं, असामान्य समझे जाते हैं।” (Human behaviour and experiences which are strange, unusual or different ordinarily are considered abnormal.)